मंजुला दुर्भाग्य या सौभाग्य भाग(8)
सुबह किसी ने दरवाजे पर थाप दी मंजुला बेसुध सो रही थी ।
दीपक की आँख खुल गयी वह मंजुला के पास गया कैसे उठाए कुछ झिझक हो रही थी , फिर वो सोते हुए बहुत प्यारी लग रही थी ।
दोवारा फिर आवाज आई और दीपक ने झट से पास रखे पानी से मंजुला के मुँह पर छिड़क दिया , वह घबरा कर उठ गई और अपलक उसे घूर रही थी पहले तो दीपक को हँसी आई ।
मंजुला ने कुछ कहने को या कहो गुस्सा होकर डाँटने को मुँह खोला दीपक ने झट से हाथ रख दिया उसके मुँह पर और मंजुला हैरान,परेशान उसे देखे जा रही थी।
दीपक धीरे से बोला दरवाजे पर कोई है जाओ जाकर दरवाजा खोल दो।
मंजुला ने बड़ी फुर्ती से दरवाजा खोला , सामने जेठानी थीं उसने हाथ जोड़कर नमस्ते दीदी कहा।
खुश रहो , अब चलो जल्दी सबके उठने से पहले तैयार हो जाओ ।
जी दीदी,
अरे देवर जी ने मुँह दिखाई में क्या दिया ।
वह कुछ न बोली आँखे नीची कर लीं रात का सीन याद आ गया।
मन ही मन बोली जब मुँह ही न देखा तो काहे की मुँह दिखाई।
अरे !क्या हुआ ???मजुला ,
कुछ न दीदी,
अच्छा !"अभी मैं जा रही थोड़ी देर में आ जाना" कहकर जेठानी चली गयी।
मंजुला ने देखा तो सारा नजारा बदल गया दीपक बाबू, पलंग पर लेटे थे । अरे इनको क्या हुआ , शायद भाभी को दिखाने को लेट गए , इसका मतलब यह नही चाहते कोई बात इस कमरे से बाहर जाए।
तभी दीपक ने कहा मैं जा रहा तुम लेट जाओ ।
मुझे नही लेटना बाहर जाना है आप लेटे रहिए , दीपक उसे देखता रहा फिर बोला गुस्सा हो मुझसे ।
नही, मैं अजनबी से गुस्सा नही होती।
मैं अजनबी हूँ , सारी रात एक कमरे में रहने के बाद मैं अजनबी हूँ।
कमरे में साथ रहने से कोई अपना नही हो जाता ।
तो कैसे होता ।
मुझे न पता कहकर वो पैर पटकती उठी तभी दीपक ने रास्ता रोक लिया, सुनो शेरनी ,
मंजुला ने गुस्से से घूर कर देखा।
डर लग रहा यार ऐसे न देखो मुझे, लो यह ।
क्या है???
मुँह दिखाई का गिफ्ट,
मुझे नही लेना कहकर उसने बॉक्स पलंग पर डाल दिया।
अपने लिए न सही पर नीचे होने बाले सवालों से छुटकारा पाने को ले लो।
मंजुला ने उसे ऐसे देखा मानो समझ न पायी वह क्या कह रहा है।
मेरा मतलब जैसे भाभी ने पूछा वैसे सब पूछेंगे तो क्या कहोगी ।
कह दुंगी मुँह दिखाई ही न हुई तो तोहफा कौन देता।या मैं इस लायक नही थी कहकर मंजुला की आँख भर गयी और वह झट से बाहर निकल आयी।
दीपक मन को कोश कर रह गया काश मेरी मजबूरी न होती तो तुम को कभी दुख न देता , पर बीबी मिली शेरनी है दीपक बाबू तुम्हें, खुद से कहकर मुस्कुरा दिया।
मंजुला नीचे जाकर तैयार हो गयी आज उसकी पहली रसोई थी उसने मेवे की खीर बनाई सभी तारीफ कर रहे थे और उसे नेग भी दिया।
दभी लड़कियों ने उसे चाची कहकर घेर लिया बच्चों का स्नेह पाकर कुछ पल के लिए मंजुला अपना दुख भूल गयी।
वैसे भी शुरू से उसे बच्चों से बहुत लगाव था।
तभी जिठानी ने आकर उसके हाथ मे खीर के दो कटोरे रख दिए जाओ जाकर दीपक को दे दो और खुद भी खा लेना, और नेग लेना न भूलना।
बेजार कदमो से वह कमरे में गयी दीपक पूजा कर रहा था। उसने वहीं दोनों कटोरे रख दिया खुद एक तरफ बैठ गयी ।फिर उसे हल्की झपकी लग गयी सुबह जल्दी उठ गयी थी।
उसे अपने पास बहुत पास सासों का अनुभव हुआ किसी के होने का आँखे खोलकर देखा तो चीखते चीखते बची दीपक उसके बहुत नजदीक था फिर उसके जागने पर पीछे हट गया।
यह क्या कर रहे थे इतने पास आकर तभी उसने गले पर हाथ गया कुछ महसूस हुआ टाइट सा , उसने सीसे में जाकर देखा एक सुन्दर नेकलस था।
तभी दीपक बोल पड़ा-अगर सही न लगा ही तो खुद लगा लो।
मंजुला के मुँह से निकल गया बहुत टाइट है,
लाओ करता ठीक कहकर दीपक आगे बड़ा ।
मंजुला ने कहा नही रहने दो आप, वो खीर खा लीजिए ,
आपको नही खानी ।
मेरी परवाह मत करो आप ।
तो मै भी नही खाता।
दिल तो कह रहा मत खाओ मेरी बला से।पर कह नही सकती , मन ही मन बुदबुदाई चोरी की चोरी ऊपर से सीना जोरी।
कैसा बन्दा बांध दिया भगवान मेरे पल्ले कहकर उसने खीर का कटोरा दीपक की तरफ कर दिया।
तुम भी खा लो मंजू, मुझे मालूम है तुम गुस्सा हो , होना भी चाहिए पर मुझे थोड़ा वक्त दे दो से सब ठीक हो जाओ।
पहलीबार उसके मुँह से अपना नाम सुनकर बहुत अच्छा लगा।
आजतक किसी ने उसे यह नाम न दिया था सभी लाड़ो या पूरा नाम लेते थे।
हम औरतें भी छोटी बात में खुशियां तलाश लेती हैं।
तभी रचना आ गयी ,भाभी आज तो आपको अपने घर जाना है पगफेरे की रस्म के लिए , फिर कब आओगी आप।
पहले से खिसियाई मंजुला के मुंह से निकल गया शायद कभी नही।
दीपक ने उसका चेहरा देखा बहुत गुस्से से मंजुला ने मुँह घुमा लिया।
भाभी आप ऐसा क्यों कहा रहीं रचना ने कहा।
मंजुला कुछ न कह सकी , तभी दीपक ने कहा तुम जाओ माँ रचना मुझे पानी ला दो।
जी भईया, कहकर रचना जैसे बाहर गयी दीपक ने मंजुला को डाँट दिया क्या कह रही तुम कभी नही आना , क्यों सबको जताना चाहती सब अक्ल नही जरा भी , एक बात याद रखना यह बात इस कमरे तक ही रहे बाहर नही जानी चाहिए न तुम्हारे घर न मेरे घर तक समझी।
दीपक के डाँटने से वह बहुत तेज रोने लगी।
दीपक घबरा गया, उसे एहसास हुआ ज्यादा शख्ती कर दी,
अरे रोना नही देखो रचना आती होगी प्लीज चुप जाओ , वह सुबक सुबक कर और रोने लगी कब से भरी बैठी थी रोना तो बनता था।
दीपक बिल्कुल पास आ गया अरे चुप जाओ न, अब न कहूँगा कुछ,
पर वो मंजुला ही क्या जो चुप जाए ,
दीपक परेशान सा कमरे में टहलने लगा , रचना को आते देख कमरे से बाहर आकर पानी ले लिया रचना अन्दर जाना चाहती थी पर दीपक
गेट से न हट वो मजबूरी में वापस लौट गई।
दीपक अन्दर आया देखा अभी उसका रोना बदस्तूर जारी था , वह झुंझला गया अरे मुझे यह रोना धोना बिल्कुल पसन्द नही, ऐसा क्या कह दिया आपसे पूरे 15 मिनट से रोए जा रही हो, अब बस भी करो मेरी माँ , मत आना जब तक दिल करे रहना अपने घर खुश, पर कृपा करके शान्त हो जाओ।
मंजुला बिखर गयी, हाँ नही आऊँगी आकर करूँगी भी क्या जब मेरी परवाह नही।
कहकर फिर रोना चाहा ।
दीपक ने उसके पास जाकर उसे द
गले से लगा लिया, ए पगली ऐसा क्यों सोचती, परवाह भी है प्यार भी बस थोड़ा सा समय दे दे मुझे , फिर कभी शिकायत का मौका न दुंगा।
एकबात और तुम को जल्दी ही लेने आऊँगा, अच्छा बताओ कब आ जाऊं ??
मंजुला एक ही पल मे दीपक के दिए सारे दर्द भूल गयी, क्योंकि नारी शारिरिक सन्तुष्टि से ज्यादा मानसिक सन्तुष्टि को महत्व देती है।
वह सन्तुष्टि मंजुला ने दीपक के क्षणिक सानिध्य में पा ली थी,
बोलो कब आओगी तुम???
जब आप आ जाएंगे मुझे लेने कहकर उसने पलकें झुका लीं मारे हया के उसका चेहरा लाल हो गया, ओर दीपक बिना मुस्कुराए नहीं सका।
Niraj Pandey
17-Oct-2021 09:11 PM
बहुत खूब
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Swati chourasia
09-Oct-2021 08:58 PM
Very nice
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آسی عباد الرحمٰن وانی
07-Oct-2021 07:03 PM
Bht khoob
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